CONTRAPTION-अनेक प्रकार के रसयंत्र बनाने के तरीके आयुर्वेद में ( CREATION OF VARIOUS TYPES OF CONTRAPTIONS OR DEVICES IN AYURVEDA )

CONTRAPTION- अनेक प्रकार के रसयंत्र बनाने के तरीके आयुर्वेद-
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CONTRAPTYION-प्रियेमित्रों। इस वेब साइट पर यह मेरा आखिरी लेख होगा क्योंकि इसके बाद जो दूसरा ब्लॉग शुरू करूँगा तो वह एक्सटेंशन वेब साइट आपसे शेयर करूँगा और आप लोगों की अधिक जानकारी के लिए आगे भी लेख लिखूंगा आयुर्वेद पर, सदैव आपकी सेवा  हाजिर रहूँगा। आइये आगे उपर्युक्त विषय पर और जानकारी हासिल करे।                                          
                       १-इक मुखिया यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) ( जलयन्त्र भेद )-

                                            करै लोह के तरै छेदाई। माँछ गाढ़ की निपै कोई। 
                                            तर ऊपर दे ऐसे ताई। ढिग ढिग लोह एक ह्वै जाइ। 
                                            आस पास ताऊ पर जरै। ऐसी जुगति कराही करै।
                                            माँछ छेद ता करे विचारी। सुजिना के उनमान जु डारी। 
                                            वस्त मेली तब पच्ची करै। तामें कील लोह की धरे। 
                                            तब सुकराही चूल्हे बरै। अग्नि प्रजारे निरसों भरै। 
                                            ज्यों ज्यों निरजु सोखतु जाइ। त्यों त्यों वामें कराई। 
                                            इकमुखिया जंत्र है येहु। पुनि सम्पुट चारि गन सेहु। 
                                                                           
                                                                                                                                          ( रसागर )


लोहे के दो तवे बनावे, जो गहरे हो उन दोनों को मिला किनारों को ताव हुए चिपका दे। फिर आस पास तवे जड़ कढ़ाही बना, ऊपर लिखे अनुसार काम में लावे।

आयुर्वेद में अनेक प्रकार के रसयंत्र खोज करने के लिए तरीके बताये गए है ( THERE ARE SO MANY TYPES OF CONTRAPTIONS OR DEVICES HAVE INVENTED BY THE MASTER OF AYURVEDA ) वे आगे बताये जा रहे है।

१-जारणा यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE )-कपडे के छने हुए लहसुन के रस से गंधक  को खूब तर करके एक हंडिया में रखे और उसके ऊपर एक हांड़ी को स्थापित क्र दोनों के मुख की संधि को कपड़ा और मिटटी से लेपकर हंडिया के ऊपर करसि की अग्नि अथवा कंडो की तेज आंच देवे।

इस प्रकार तीन बार करे तब यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) में पारद का क्षय नहीं होता और न कहीं जाता है। इस क्रम से गंधक जारण करे। 

२-तुला यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE )-लम्बे और गोल बैंगन के आकार की दो मूषा बनावे और उन दोनों मूषाओं के नीचे प्रादेशमात्र ( एक बालिश्त ) लम्बी नली लगावे और नली को मिटटी से चिकनी करे। तदन्तर एक मूषा में पारद और दूसरी में गंधक को स्थापित करे और दोनों के मुख को बांधकर वालुका यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) में रखे।

फिर गंधक के नीचे अग्नि को जलावे। बस इसी को तुला यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहते है। इस यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) से हरताल गंधक और चांदी का जारण होता है। 

विचार-कहीं तार की जगह सार का पाठ है सो ठीक नहीं क्योंकि तार बीज जारण के लिए ग्रहण है और सार का जारण कहीं नहीं हैं। 

वैद्यों द्वारा आयुर्वेद में रसयंत्रों को अलग अलग रस के लिए तैयार किया है ( THE MASTER'S OF AYURVEDA HAS ADOPTED EVERY CONTRAPTIONS OR DEVICES FOR EVERY METALS SEPARATELY ) जो की आगे बताये जा रहे है। 

१-अन्यच्च-बारह अंगुल की दो लोहे की मूषा बनावे। उनमें से एक में छोटा सा छेदकर और दूसरी मूषा के भीतर पारा रख देवे। फिर संधिलेप करे जिसके भीतर गंधक रखा था, उसके नीचे आंच लगावे तथा पारदवाली मूषा के नीचे जल रखे [ जो इसे तुला यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) समछना ठीक है, ऐसी इस ग्रंथकर्ता की सम्मति है ]

२-अन्यच्च-नलीदार ऊँचे मुखवाली एक मूषा बनावे जिसका विस्तार बारह अंगुल हो और ऐसी ही एक दूसरी मूषा  बनावे फिर एक में गंधक और दूसरी पारद भर दे। यह पारद तथा गंधक समान भाग और दोनों के मुख को मिलाकर मुद्रा करे।

फिर गंधक के नीचे आग जलावे तथा पारद के नीचे जल रखे तो पारद गंधक को पी जाता है। जब पारा गंधक को पी जाय तब फिर भी उतना गंधक डालकर जारण करे। इस प्रकार छः गुना गंधक जारण करे। इस रीति से पारद बुभुक्षित होता है।