अनेक प्रकार के रसयंत्र बनाने के तरीके आयुर्वेद में ( CREATION OF CONTRAPTIONS OR DEVICES IN AYURVEDA )

CREATION OF CONTRAPTIONS OR DEVICES IN AYURVEDA-4
google, com|Image by google images

१-कच्छयप यंत्र ( CONTRAPTIONS OR DEVICES )-मिटटी का एक लम्बा चौड़ा शकोरा बनवावे, उसके भीतर लोहे के सम्पुट को रखे तदन्तर उस सम्पूर्ण में स्थापित किया हुआ पारद निरंतर अभ्रक और गंधक वगैरह को भक्षण करता है अर्थात अभ्रक और गंधक जारण होता है। परियमित्रों।

जिस प्रकार किसी भी युद्ध क्षेत्र मैं लड़ाई बिना हथियारों के नहीं जीती जा सकती उसी परकार किसी भी क्षेत्र में बगैर इंस्ट्रूमेंट्स के उस क्षेत्र का कार्य संभव नहीं है। इसलिए आयुर्वेद के क्षेत्र में भी बिना किसी यन्त्र ( CONTRAPTIONS OR DEVICES ) के पारद को सिद्ध करना असंभव है। 

आइये आगे इनमें से कुछ और यंत्रो (CONTRAPTIONS OR DEVICES )का अध्ययन करे।


२-अन्यच्च-प्रथम चपटा मिटटी का खपड़ा लेना चाहिए। तदन्तर खपड़े के बीच में विस्तृत थामला बनावे और उस थामले में पारद को रखे। पारद के ऊपर तथा नीचे बिड देकर शकोरा से ढाक दे और संधि लेपकर ऊपर से आंच जलावे। पारद में गंधक जारण लिए ये कच्छयप यंत्र ( CONTRAPTIONS OR DEVICES ) कहा है। 

३-अन्यच्च-जल से भरे हुए लम्बे चौड़े एक द्रिढ पात्र को लेवे। उसके भीतर नवीन और विस्तृत एक खपड़े को रखे और उसपर  बिड को देकर बीज के खाने वाले पारद को स्थापित करे फिर उस पारद पर बिड को रखे। 

तदन्तर लोहे की कटोरी अथवा कांतलोह की बनी हुई कटोरी जो कि मांजते मांजते पीतल के समान हो गई हो  उसको ऊपर से उल्टा मुखकर रखे। तदन्तर संधि लेप करे या खड़िया नोन हर्र और राख को अच्छी तरह पीसकर मुद्रा करे। ऊपर से जंगली कन्डो की आंच से धोंके। इसको कचछयप यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहते है। 

रसों को बनाने के लिए आयुर्वेद में जिन यंत्रों की आवश्यकता होती है ( CONTRAPTIONS OR DEVICES REQUIRED FOR PREPARE THE COMPOUND IN MERCURY PURITY IN AYURVEDA )   

१-अन्यच्च-जल के भरे हुए पात्र से एक लम्बा चौड़ा घड़े का खीपर रख उसके बीच में छोटी से कोठी बनावे और उस कोठी में प्रथम बिड फिर पारद को रखें फिर जिस पर छः बार कपरोटी की हुई हो, ऐसी हलकी लोहे की   कटोरी से ढक कर सीधे लेप करे।  

और ऊपर से खैर और बेर के अग्नि से स्वेदन करे तो कच्छयप यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) में स्तिथ पारद जारित होता है और उस कच्छ्यप यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) में अग्नि के बल से सम्पूर्ण सत्व द्रव होते हैं। 

२-अन्यच्य-दस सेर जल जिसमे आवे, ऐसे  पात्र को उसके कठ पर्य्यत धरती में गाढ़ जल से भर दे फिर उसके मुख पर नए खपरे को इस तरह रखे कि जिसका तल पानी से लगा रहे। 

तदन्तर चूने को पानी से पीसकर महीन कर उस चूने से खिपर के बीच में कड़े के समान उतना बड़ा थामला बनावे जितना के रस का गोला हो। 

और उसमें आठवां हिस्सा बिड़पारद तथा वह पदार्थ जिसका ग्रास दिया जाये, रखे और जिसकी पीठ पर मृतिका का लेप किया हुआ हो, ऐसी लोहे की बनी हुई पतली शकोरे की आवृतिवाली कटोरी से पारद को बंद कर मुद्रा करें फिर उपर कोयलों से धोके तो पारद शीघ्र ही ग्रास को ग्रस लेता है।

 जितने समय में सुवर्ण और चांदी में ताव लगता है, उतने ही समय तक पारद में ग्रास जीर्ण होता है, इस कच्छप यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) से इच्छापूर्वक जारण होता है। 

जो भी कुछ है ये सब तभी संभव हो सकता है अगर इंसान अपनी आत्मा तथा देह सिद्धि कर लेगा उस परम पावन इश्वेरिय एकओङ्कार परमतत्व को खुश करके काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर विजय प्राप्त कर लेगा। 

तब जाकर जब देह और आत्मा की सिद्ध कर लेगा तो उसके बाद लोह सिद्धि भी आसानी से कर लेगा अन्यथा ख़ाक छानने के तुल्य होगा। शेष अगले भाग में।