अनेक प्रकार के रसयंत्र बनाने के तरीके आयुर्वेद में ( CREATION OF CONTRAPTIONS OR DEVICES IN AYURVEDA

CREATION OF CONTRAPTIONS OR DEVICES IN AYURVEDA-3
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प्रियबन्धुओ। आज इस जगत में भिन्न भिन्न क्षत्रों में कितने ही प्रकार के साधन प्रयोग में लाये जा रहे है किन्तु आयुर्वेद जगत में बंधू भाईयों का चाव कम दिखाई पड़ता है। 

लिहाजा इसका परिमाण साफ है की जो यंत्र वैद्याचार्यो ने अविष्कार किये उन्हीं से काम करने की जरुरत है जो भाई इच्छुक हैं, तो आइये आगे इन साधनों या यंत्रो (CONTRAPTIONS OR DEVICES ) का ज्ञान हासिल करे। 

 १-तिर्यकपातन यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE )-एक घड़े में रस को भरे तथा दुसरे घड़े में जल को भरे और उन दोनों के मुख को टेढ़ा कर कपरोटी से बंद कर देवे और जिस घड़े में पारद भरा था।  

उसके नीचे तब तक आंच जलावे कि जब तक पारा जल में प्रविष्ट न हो जाये। बस नागार्जुनादि सिद्धों ने इसी को त्रियकपातन यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहा जाता है। 

२-अन्यच्च-जिस घड़े की गर्दन लम्बी हो, उसी गर्दन के नीचे एक लम्बी नाल लगी हो, ऐसे घड़े में पारद को डालकर उस घड़े की नाल को दुसरे घड़े के पेट में छेदकर लगा देवे। 

तदन्तर दोनों घडों के मुख तथा अन्य शंधियों को कपरोटी से बंद कर उस घड़े के नीचे आंच जलावे कि जिससे पारद भरा हुआ हो और दुसरे घड़े में प्रथम से ही मीठा और ठंडा जल भरा हुआ हो। 

वार्तिक कारों ने इस यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) को तिर्यक पातन यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहा है। 

आयुर्वेद में रसयंत्र बनाने के भिन्न भिन्न प्रकार के तरीके  ( THE DEVICES AND COMPOUNDS CREATION IN AYURVEDA)

१ -अन्यच्च-पहले कही हुई औषधियों से मर्दन किये हुए पारद को तिरछे घट में रख उसके मुँह को खाली घड़े के मुख पर रखे फिर उस घड़े के तल में छेद्कर एक नाली लगावे। 

तदन्तर उस नाली के दुसरे मुख को जल से परिपूर्ण घट में प्रवेश करे और उस रस यंत्र ( DEVICE ) ( जिसमे पारा हो ) के नीचे दो प्रहरपर्य्यत आंच जलावे तो पारद का त्रियक पातन होता है। 

२-अन्यच्च-                                और यह यत्र सुनिये वीर। सो समुछो जाकी मति धीर। 
                                                 ऐसी ही करि डौरु धरै। हांड़ी फूंखि जो टोंटी करे।  
                                                 लोहनारि गजभरि के लेइ। लोहनारि में टोंटी देई। 
                                                 दूजो मुख जो नारिको करै। नीरभरी गागरि में धरै। 
                                                 तुजक पताल है याको नाम। याते होय सूत को काम।    

३-पालिका यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE )-लोहे का गोल प्याला जिसके आगे से नमा हुआ ऊपर को उठा हुआ डंडा हो उसे पालिका यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहते है। यह गंधक के जारण में काम आता है। 

आयुर्वेद में रसयंत्रों को खोजने के बाद इनसे लेना काम सबसे मुश्किल तथ्य है ( MERCURY CONTRAPTIONS OR DEVICES ARE VERY DIFFICULTY TO USE THEM IN AYURVEDA )

-इष्ट का यंत्र-( CONTRAPTION OR DEVICE )-वैद्य ऐसी ईंट बनावे जिसके बीच में एक गड्ढा हो उसमें पारद को रख ऊपर शकोरे से ढक संधि को राख और नोंन से लीपने तदन्तर ईंट को गड्ढे में रख ऊपर से बालू रेत बिछा देवे फिर आरने कन्डो का लघु पुट देना चाहिए। 

यह इस्टिका यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) गन्धकादिका जारण करता है। 

२-अन्यच्च-एक गोल गड्ढा खोदकर उसमें मल्ल ( मलड़ा मिटटी का एक गोलपात्र ) को गाड़ देवे। फिर उसमे ऐसी एक ईंट रखे कि जिसके बीच में एक गोल गड्ढा हो। 

और उस गड्ढे के चरों तरफ एक एक अंगुल की ऊँची पाली ( मेड ) बांधे तदन्तर उस ईंट में किये हुए गड्ढे में पारद को रख फिर गड्ढे के मुख पर बंद कर राख और नोनं से संधि का लेप कर वर्ना कन्डो से आंच देवे।  

और वह आंच कपोत पुटकी हो उससे अधिक न हो क्योंकि अधिक अग्नि के लगाने से पारद के क्षय की सम्भावना है। यह इष्टिका यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) है, इससे गंधक जारण करें। शेष अगले भाग में।