अनेक प्रकार के रसयंत्र बनाने के तरीके आयुर्वेद में ( CREATION OF CONTRAPTION OR DEVICE IN AYURVEDA )
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१-कछ्यप यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE )-अन्यच्च-चौड़े मुख की एक हंडिया को जल से भर उसके मुख पर ऐसे खीपरा को रखे कि जिसकी पीठ हंडिया से लगी हुई तो तदन्तर उस खीपरा में जल से चुने से गोल गोल मेखला बनवावे जिसका मध्यभाग उसी पिसे हुए चूने से लीपा हुआ हो।
उसमें पारद का ८वां हिस्सा बड़ लेकर उसके दो भाग करे, उसमें से उस पारद के अष्टमांश का आधा भाग रख उस पर पारद का गोला स्थापित कर देवे फिर निम्बू रस थोड़ा सा निचोड़ ऊपर से बचे हुए आधे बिड का देकर जिसकी पीठ पर कपरोटी की हुई हो।
ऐसी पतली लोहे की कटोरी को उन पारद के गोले पर लगाके उसकी संधि का जल से पिसे हुए राख और नोन से लेप करे और ऊपर से कोयलों की इतनी आंच लगाता रहे कि जितनी देर में स्वर्ण गलता हो।
प्रियबधुओं। हम सब उस निराकार ज्योति निरंजन परम पावन परमात्मा जो कि इस चराचर और नाशवान जगत का रचियता है, को अपना मस्तिष्तक छुकाकर उसकी प्रशंसा और उपासना करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि है ईश्वर। हम सब को सच्चे और सीधे रास्ते पर चलने की कृपा कीजिये।
आगे बंधुओ, जो विषय आयुर्वेद में अलग अलग प्रकार के रस यंत्रो ( CONTRAPTIONS OR DEVICES ) के बनाने के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहें है आइये आगे कुछ और जाने।
तदन्तर कोयलों को निकाल स्वांग शीतल होने से पारद को निकाल कर तोले, जब पारद तोल में ठीक बैठे ( अर्थात बीड, बीज तथा पारद इन तीनों की तोल केवल पारद की ही तोल रहे ) तब कांजी से धो डालना चाहिए।
यदि पूर्वोक्त रीति के अनुसार अधिक पारद हो तो फिर बिड देकर जारण करें। इस प्रकार ही दूना तथा चौगुना अभ्रक सत्व जारण होता है। अथवा कोयलों की बजाय तुष् मिले हुए आरने कंडों से चूर से खीपरा भर रीति से अग्नि लगावे।
रसयंत्रों को बनाने के लिए आयुर्वेद में भिन्न भिन्न तरीके अपनाये गए ( DIFFERENT TYPES OF CONTRAPTIONS OR DEVICES ADOPTED IN AYURVEDA )
१-दीपिका यन्त्र ( CONTRAPTIONS OR DEVICE )-कछ्यप यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) के भीतर मिटटी के पीढ़े ऊपर दिए में रखे हुए जिस पात्र में पारा गिरता है, उसको दीपिका यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहते हैं।
२-सोमानल यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE )-जिस यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) के ऊपर अग्नि तथा नीचे जल तथा बीच में पारद की सामग्री हो उसको सोमानल यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहा है। इस यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) में अभ्रकादि का कारण होता है।
आयुर्वेद में रसयंत्र बनाने के लिए जिस प्रकार प्रयोग में आये ( USED DIFFERENT TYPES OF CONTRAPTIONS OR DEVICES IN AYURVEDA )
१-अन्यच्च-
पुनि षट सम्पुट सात बखानी। यहै जुगति सबहीकी जानि।
करि लोह की कराही ऐसी। गगरी निरुमाई उहि जैसी।
चुंबक की जु लुहेंड़ी करै। बारबार भरि उलटिकै धरै।
मुद्रा मैनकी कीजे गुनी। जैसी हो गुनिन पर सुनी।
यहै यंत्र सोमानल नाम। आवे सो पारे काम।
२-जल यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE )-नीचे अग्नि ऊपर जल तथा बीच में रस और गंधक हो, बस इसी को जल यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहते है।
अगर जल यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) की मुद्रा द्रिढ हो तो मन्दभाग्य की भी सिद्धि होती है, जल यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) बनाना हो तो यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) मूषा बनवावे, तदन्तर पूर्ववत गंधक आदि की जारणा होती है।
३-अन्यच्य-अब समस्त प्रयोगों के योग्य होने के कारण पारद मारण के लिए शांभवी मुद्रा हो कहते है। पारद और गंधक को सम्पुट के बीच में रख कर ऊपर जल तथा नीचे से अग्नि को रखे तो उसको जल यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) कहते है।
यदि इस यंत्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) की मुद्रा द्रिढ हो तो मन्दभाग्य की भी सिद्धि हो जाती है। यदि लोहे का यन्त्र ( CONTRAPTION OR DEVICE ) बनाया जाये तो मिटटी का लेप करना चाहिए। शेष अगले भाग में।
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